sunil adhikari
Thursday, October 31, 2013
!!!...हमारे आने पर वहाँ बहारे आती थी,हमारे वहाँ होने पर यारो कि महफिले लगती थी,हर गलियाँ व आँगन गाते थे कोई गीत प्यारा, लेकिन सुना है अब वहाँ सन्नाटा बिफरा रहता है हमारी यादोँ का....!!!
!! मैँ सोख से कोई पत्ता टुटा हुआ मुझको ये हवाएँ उडाती फिरे हर जगह....!!!
!! मैँ सोख से कोई पतता टुटा हुआ मुझको ये हवाएँ उडाती फिरे हर जगह....!!!
Wednesday, October 30, 2013
''वक्त'' अच्छा जरुर आता है...बस कमबख्त ''वक्त" पर नही आता..''पल- पल'' तरसते थे जिस ''पल'' के लिए... वो पल भी आया कुछ ''पल'' के लिए...सोचा उस ''पल'' को रोक लु कुछ ''पल'' के लिए...पर वो ''पल'' ना रुका एक पल के लिए.....!!So enjoy your every ''पल'' OF LIFE!!
Tuesday, October 29, 2013
पेड का एक पत्ता होके घमंड मेँ चुर खुद को खुबसुरत बताए,घमंड मेँ ऐसा चुर कि पेड व जङ को तुच बताएँ,एक दिन हवा के झोँके मेँ वो झङ के कही दुर उङ जाए व अपनी हस्ती को गवाएँ,घमंड उसका उसके साथ ही मिट्टी मेँ मिल जाए।।
पेड का एक पत्ता होके घमंड मेँ चुर खुद को खुबसुरत बताए,घमंड मेँ ऐसा चुर कि पेड व जङ को तुच बताएँ,एक दिन हवा के झोँके मेँ वो झङ के कही दुर उङ जाए व अपनी हस्ती को गवाएँ,घमंड उसका उसके साथ ही मिट्टी मेँ मिल जाए।।
उलझी हुई जिँदगी कि डोर है,इस डोर को सुलझाने दो, मुझे अब नया ख्वाब सजाने दो।।सजाने दो।। सजाने दो।।उलझी सुलझी कैसी ये जिँदगी कि कहानी,डलती जाए इस कि जवानी अब तो मुझे खुल के जीने दो।अब नया ख्वाब सजाने दो।।
उलझी हुई जिँदगी कि डोर है,इस डोर को सुलझाने दो, मुझे अब नया ख्वाब सजाने दो।।सजाने दो।। सजाने दो।।उलझी सुलझी कैसी ये जिँदगी कि कहानी,डलती जाए इस कि जवानी अब तो मुझे खुल के जीने दो।अब नया ख्वाब सजाने दो।।
Sunday, October 13, 2013
jai ho........
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