Tuesday, October 29, 2013

उलझी हुई जिँदगी कि डोर है,इस डोर को सुलझाने दो, मुझे अब नया ख्वाब सजाने दो।।सजाने दो।। सजाने दो।।उलझी सुलझी कैसी ये जिँदगी कि कहानी,डलती जाए इस कि जवानी अब तो मुझे खुल के जीने दो।अब नया ख्वाब सजाने दो।।

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