'' निँद की दुनिया''
मीठी निँद कि दोपहरी मेँ, कोई सपनो का सुरज जगे।
ना किसी शोर शराबा के,
एक प्यारी सी निँद पले।
नया कोई चिँता,ना कोई टोक,
बस ये बेफीकर हो खेलन चले।
ले सपनो को बाजुऔ मेँ,
कोई पक्षी जैसा ले उडे,
मन कभी बिचलाए, कभी सुधबुध खोए फिरे,
कभी खुद को भी निँदो मेँ ना पहचाने,बस बाबरा होए चले।।...,
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